‘अंडरवाटर ग्राउंड रिपोर्टिंग’ में दिखाई दे रहा भारतीय टीवी चैनल के एक पत्रकार का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. पत्रकारिता से सरोकार रखने वाले अधिकांश पत्रकार इस वीडियो को पोस्ट करके खूब तफरी ले रहे हैं. एक तरफ जहां इस वीडियो में पत्रकार की मनोदशा और उसके क्रियाकलापों को देखा जा सकता है वहीं दूसरी तरफ इसमें भारतीय टीवी चैनलों का एक ‘हिडन ट्रुथ’ भी देखा जा सकता है.
टीवी चैनल के रिपोर्टर का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है जिसमें वह गले भर पानी में खड़े होकर ‘ग्राउंड रिपोर्टिंग’ करते हुए मसखरी करता नजर आता है। बाढ़ या जलभराव की रिपोर्टिंग के नाम पर इस तरह की ‘स्टंट पत्रकारिता’ पर सोशल मीडिया में तीखी प्रतिक्रियाएं और हास्य-व्यंग्य दोनों देखने को मिल रहे हैं।
वीडियो में रिपोर्टर कैमरे के सामने गले तक पानी में डूबा खड़ा होकर संवाद करता दिखता है। इसे लेकर पत्रकारों और सोशल मीडिया यूजर्स ने सवाल उठाए हैं कि क्या यह जरूरत थी या महज सनसनी पैदा करने का तरीका।
NDTV के वरिष्ठ पत्रकार उमाशंकर सिंह ने वीडियो को एक्स (ट्विटर) पर साझा करते हुए लिखा:
“इस रिपोर्टर ने इसे स्वेच्छा से ही किया होगा! इस ‘अंडर वाटर ग्राउंड रिपोर्टिंग’ में झोंकी गई मेहनत पर कोई सवाल नहीं है। डर है तो बस इतना कि किसी और चैनल में बैठा कोई संपादक भी अपने रिर्पोटर से ज़बरदस्ती यही न डिमांड करने लगे! गला काट प्रतिस्पर्धा जो है!”
वरिष्ठ पत्रकार की इस टिप्पणी में यह आशंका झलकती है कि टीआरपी की होड़ में चैनल कहीं अपने रिपोर्टरों को जान जोखिम में डालने के लिए मजबूर न करने लगें।
सोशल मीडिया एक्टिविस्ट कविश अज़ीज़ ने तंज कसते हुए लिखा:
“जान जोखिम में डालकर इतनी खतरनाक पत्रकारिता करने वाले इस पत्रकार को दिल्ली सरकार की तरफ से अवार्ड मिलना चाहिए।”
वहीं एक अन्य यूजर गोविन्द प्रताप सिंह ने तीखा व्यंग्य किया:
“रिपोर्टर की इस ग्राउंड रिपोर्ट में पूरी ‘पत्रकारिता’ डूब गई।”
एक अन्य यूजर ने लिखा:
“पत्रकार बनने के लिए अब तैराक होना भी जरूरी है।”
एक यूजर ने रिपोर्टर के संघर्ष पर कटाक्ष करते हुए लिखा:
“पत्रकार के साथ पत्रकारिता पानी में संघर्ष करती हुई।”
इस तरह के कमेंट्स से साफ है कि लोग इस ‘अंडर वाटर ग्राउंड रिपोर्टिंग’ को पत्रकारिता का साहसिक उदाहरण नहीं बल्कि एक हास्यास्पद प्रदर्शन मान रहे हैं।
सनसनी और टीआरपी की होड़ पर सवाल
मीडिया विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय टीवी न्यूज़ चैनलों में कई बार “ग्राउंड रिपोर्टिंग” के नाम पर जरूरत से ज्यादा नाटकीयता जोड़ दी जाती है। बाढ़ या जलभराव की गंभीर समस्या को दिखाने के लिए रिपोर्टर का गले तक पानी में उतरना और उसमें मजाकिया लहजे में रिपोर्ट करना दर्शकों को असहज करता है और असली मुद्दे से ध्यान हटा देता है।
वरिष्ठ पत्रकारों और सोशल मीडिया यूजर्स की यह आलोचना दरअसल टीवी न्यूज़ की गिरती विश्वसनीयता और कंटेंट की गैर-जरूरी नाटकीयता पर गहरी टिप्पणी है।
जहां एक ओर पत्रकारिता में जमीनी सच्चाई दिखाना जरूरी है, वहीं यह भी जरूरी है कि रिपोर्टर की सुरक्षा और गरिमा बनी रहे और खबर का फोकस मुद्दे पर ही रहे, न कि पत्रकार के ‘स्टंट’ पर।
हाल के कुछ सालों में भारतीय मीडिया और टीवी चैनलों के कारनामे
हाल के कुछ सालों में भारतीय टीवी चैनलों के कई ऐसे कारनामे सामने आए हैं, जो पत्रकारिता मानकों और निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं। नीचे कुछ प्रमुख उदाहरण दिए गए हैं:
सुशांत सिंह राजपूत मामले में भ्रामक कवरेज (2020)– कई टीवी चैनलों, जैसे रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ, ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच को सनसनीखेज तरीके से पेश किया। इन चैनलों ने बिना सबूत के साजिश सिद्धांत फैलाए और व्यक्तिगत हमले किए, जो पत्रकारिता की निष्पक्षता और नैतिकता के खिलाफ था। न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (NBSA) ने रिपब्लिक टीवी को इस कवरेज के लिए फटकार लगाई और माफी मांगने का आदेश दिया।
2020 दिल्ली दंगे की पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग- टाइम्स नाउ के एंकर राहुल शिवशंकर और पद्मजा जोशी ने दिल्ली दंगों की कवरेज में निष्पक्षता का उल्लंघन किया। NBSA ने पाया कि इन एंकर्स ने सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (CAA) विरोधियों को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए एकतरफा तरीके से जानकारी पेश की। परिणामस्वरूप, चैनल को वीडियो हटाने और माफी मांगने का आदेश दिया गया।
सुदर्शन टीवी का ‘बिंदास बोल’ विवाद (2020)- सुदर्शन टीवी ने एक शो में मुस्लिम समुदाय को सिविल सर्विसेज में भर्ती होने को ‘जिहाद’ और ‘घुसपैठ’ बताया। सुप्रीम कोर्ट ने इस कवरेज को सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वाला माना और सरकार से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नियंत्रण पर जवाब मांगा, जो पत्रकारिता के निष्पक्षता मानकों का उल्लंघन दर्शाता है।
कोविड-19 कवरेज में सरकार समर्थन (2021)- कई चैनलों, जैसे इंडिया टीवी और आजतक, ने सरकार की कोविड-19 नीतियों का पुरजोर समर्थन किया और विपक्षी दलों या किसान आंदोलन को दोषी ठहराया, जबकि ऑक्सीजन की कमी जैसे मुद्दों को नजरअंदाज किया। यह रिपोर्टिंग सरकार के प्रति पक्षपात और जनहित की अनदेखी को दर्शाती है।
भारत-पाक संघर्ष में युद्धोन्मादी रिपोर्टिंग (2019 और 2025)- 2019 के पुलवामा हमले और 2025 में भारत-पाक सैन्य कार्रवाई के दौरान, चैनलों जैसे रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ ने बिना पुष्टि के युद्धोन्मादी खबरें चलाईं, जैसे “पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया”। यह पत्रकारिता की सत्यता और शांति की जिम्मेदारी के खिलाफ था।
यह भी पढ़ें- IAS बनाम जज: डॉ. विकास दिव्यकीर्ति के वायरल वीडियो पर कोर्ट का बड़ा फैसला – मानहानि का मामला दर्ज!
यह भी पढ़ें- यूट्यूबर श्याम मीरा सिंह और लेखक अशोक कुमार पाण्डेय क्यों भिड़े? रॉयल्टी विवाद पर सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस
यह भी पढ़ें- हज 2026 के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू: मुस्लिम तीर्थयात्रियों के लिए ऑनलाइन पंजीकरण 31 जुलाई 2025 तक खुला