IAS बनाम जज: डॉ. विकास दिव्यकीर्ति के वायरल वीडियो पर कोर्ट का बड़ा फैसला – मानहानि का मामला दर्ज!

Published on: 26-07-2025
Rajasthan Court Finds Prima Facie Case Against Drishti IAS Founder Dr Vikas Divyakirti Over Allegedly Derogatory Remarks on Judiciary
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राजस्थान के अजमेर की एक अदालत ने दृष्टि IAS कोचिंग संस्थान के संस्थापक और चर्चित शिक्षक डॉ. विकास दिव्यकीर्ति के खिलाफ दर्ज एक आपराधिक शिकायत पर आंशिक संज्ञान लेते हुए कहा है कि प्रथमदृष्टया यह प्रमाणित होता है कि उन्होंने “तुच्छ प्रचार पाने की दुर्भावनापूर्ण मंशा” से न्यायपालिका के खिलाफ “आपत्तिजनक और व्यंग्यात्मक भाषा” का इस्तेमाल किया।

Live Law की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला यूट्यूब पर प्रसारित एक वीडियो से जुड़ा है, जिसका शीर्षक है — “IAS vs Judge: कौन ज्यादा ताकतवर है | (Who is more powerful?) Best Guidance by Vikas Divyakirti Sir Hindi Motivation”। इस वीडियो में आईएएस अधिकारियों और न्यायाधीशों की शक्तियों की तुलना करते हुए कथित रूप से न्यायपालिका को नीचा दिखाया गया है।

शिकायतकर्ता कमलेश मंडोलिया ने दावा किया कि इस वीडियो ने न केवल उन्हें अपमानित और अपदस्थ महसूस कराया, बल्कि न्यायिक अधिकारियों और पूरी न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाई और जनता के बीच न्यायपालिका पर से विश्वास कमजोर किया।

किन धाराओं में मामला दर्ज हुआ

यह शिकायत भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 353(2) (सार्वजनिक उपद्रव), 356(2), (3) (मानहानि) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A(b) के तहत दर्ज कराई गई थी।

हालांकि अदालत ने IT Act की धारा 66A(b) के तहत आरोपों को खारिज कर दिया, क्योंकि आवश्यक तत्व मौजूद नहीं पाए गए, लेकिन BNS की धारा 356 के तहत मानहानि के आरोपों पर आंशिक संज्ञान लिया।

अदालत ने निर्देश दिया कि इस मामले को आपराधिक पंजी में दर्ज किया जाए और डॉ. विकास दिव्यकीर्ति को व्यक्तिगत रूप से अगली सुनवाई पर उपस्थित होने का आदेश दिया।

अदालत का आदेश और तर्क

अतिरिक्त दीवानी न्यायाधीश और न्यायिक मजिस्ट्रेट क्रमांक 02, अजमेर, मानमोहन चंदेल ने 8 जुलाई 2025 के आदेश में कहा:

“कॉग्निजेंस के स्तर पर अदालत को सबूतों का टुकड़ा-टुकड़ा करके मूल्यांकन नहीं करना होता, बल्कि यह देखना होता है कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के आधार पर प्रथमदृष्टया ऐसी बातें और आधार उपलब्ध हैं या नहीं जिनके आधार पर आरोपी के खिलाफ आगे की कार्यवाही की जा सके।”

जज ने अपने आदेश में कहा:

“रिकॉर्ड पर मौजूद प्रथमदृष्टया मजबूत साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि आरोपी विकास दिव्यकीर्ति ने तुच्छ प्रचार पाने की दुर्भावनापूर्ण मंशा से न्यायपालिका के खिलाफ आपत्तिजनक और व्यंग्यात्मक भाषा का इस्तेमाल किया, जिसमें न केवल न्यायाधीश बल्कि अधिवक्ता भी शामिल हैं। वीडियो में ऐसे शब्दों और वाक्यों का इस्तेमाल कर इसे सनसनीखेज बनाने की कोशिश की गई।”

अदालत ने कहा कि इससे न्यायपालिका की प्रतिष्ठा, निष्पक्षता और गरिमा को ठेस पहुंची है और इससे आम जनता में “न्यायपालिका के प्रति भ्रम, अविश्वास और संदेह की स्थिति” पैदा हो सकती है।

भारतीय न्याय संहिता में मानहानि की परिभाषा

संदर्भ के तौर पर, भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 356 कहती है:

“कोई भी व्यक्ति, जो शब्दों द्वारा (बोले गए या पढ़ने हेतु लिखे गए), संकेतों द्वारा या दृश्य अभिव्यक्तियों द्वारा किसी व्यक्ति के संबंध में ऐसा कोई आरोप करता या प्रकाशित करता है, जिसका आशय उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाना हो, या यह जानते हुए या विश्वास करते हुए कि ऐसा आरोप उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाएगा, वह व्यक्ति उस व्यक्ति की मानहानि करता है।”

डॉ. दिव्यकीर्ति का बचाव

डॉ. विकास दिव्यकीर्ति ने अदालत में दिए अपने जवाब में आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उनका उस यूट्यूब चैनल से कोई लेना-देना नहीं है जिसने वीडियो अपलोड किया। उन्होंने कहा,

“मैं स्पष्ट रूप से कहता हूं कि मेरा उस यूट्यूब चैनल से कोई संबंध, नियंत्रण या संलिप्तता नहीं है, जिसने कथित वीडियो अपलोड किया। न तो दृष्टि IAS ने और न ही मेरी ओर से किसी ने उस वीडियो को प्रकाशित या अधिकृत किया। यह वीडियो संभवतः बिना मेरी जानकारी या अनुमति के किसी अनजान तीसरे पक्ष ने अपलोड किया है।”

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि शिकायतकर्ता को इस मामले में लोकस स्टैंडी (अधिकारिता) ही नहीं है, क्योंकि वीडियो में न तो व्यक्तिगत रूप से शिकायतकर्ता का उल्लेख है और न ही किसी ऐसी विशेष, पहचानी जाने वाली श्रेणी का जिसने उससे जुड़ाव साबित किया हो।

इसके अलावा, उन्होंने अपने वक्तव्य को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत उचित ठहराया और कहा कि यह केवल सार्वजनिक प्रशासन पर एक सामान्य टिप्पणी थी, न कि किसी जज या न्यायपालिका पर व्यक्तिगत हमला।

अदालत ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तर्क को क्यों खारिज किया

अदालत ने डॉ. दिव्यकीर्ति के इस तर्क को यह कहते हुए खारिज किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार जरूर है, लेकिन इस पर युक्तिसंगत प्रतिबंध भी लागू हैं। उन्होंने कहा,

“इस अधिकार की आड़ में कोई भी व्यक्ति या संस्था न्यायपालिका या न्यायाधीशों को अपमानित या बदनाम नहीं कर सकती और न ही न्यायालयों/न्यायाधीशों की निष्पक्षता और गरिमा पर सार्वजनिक रूप से आक्रमण कर सकती है।”

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के अरुंधति रॉय मामले और प्रशांत भूषण के खिलाफ लिए गए स्वत: संज्ञान अवमानना मामलों का हवाला देते हुए कहा कि न्यायपालिका की अवमानना के मामलों में भी यह सिद्धांत लागू होता है कि न्यायालय की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने वाली अभिव्यक्ति की छूट नहीं दी जा सकती।

इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि डॉ. दिव्यकीर्ति ने यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया कि उन्होंने उस चैनल या व्यक्ति को कोई कानूनी नोटिस भेजा जिसने यह वीडियो अपलोड किया या इसके प्रसारण पर कोई आपत्ति दर्ज कराई। कोर्ट ने कहा,

“यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि जब कोई व्यक्ति किसी संस्थान के निदेशक या शिक्षक के रूप में ऑनलाइन/ऑफलाइन शिक्षा के संदर्भ में कोई भाषण देता है, तो वह यह जानता है कि उसका भाषण रिकॉर्ड किया जाएगा और उसकी स्वीकृति से ही इसे प्रकाशित किया जाता है और उसकी सदस्यता बेची जाती है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि वीडियो में भाषण देने वाला व्यक्ति इस बात से अनजान था कि इसे सार्वजनिक किया जाएगा।”

अदालत ने यह भी कहा कि जब डॉ. दिव्यकीर्ति को अदालत ने अपना पक्ष रखने का अवसर दिया, तब भी उन्होंने किसी तरह की माफी या खेद प्रकट नहीं किया। कोर्ट ने कहा,

“उन्होंने न तो लिखित में कोई पछतावा जताया, न ही विवादास्पद वीडियो के लिए कोई माफी मांगी।”

क्या था मामला?

शिकायतकर्ता कमलेश मंडोलिया ने कहा कि वीडियो में आईएएस अधिकारियों और जजों की तुलना करते हुए न्यायिक अधिकारियों का अपमान किया गया और यह वीडियो कानूनी पेशेवरों की भावनाओं को आहत करता है।

उनका कहना था कि वीडियो केवल अकादमिक बहस नहीं थी बल्कि इसे जानबूझकर न्यायपालिका की छवि धूमिल करने और मजाक उड़ाने के लहजे में पेश किया गया।

अब आगे क्या होगा?

अदालत ने मानहानि के आरोपों के तहत भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 356 के तहत मामला दर्ज करने का आदेश दिया है। डॉ. विकास दिव्यकीर्ति को 22 जुलाई 2025 को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होना होगा। अदालत ने चेतावनी दी है कि आदेश का पालन न करने पर उनके खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी।

मामला: कमलेश मंडोलिया बनाम डॉ. विकास दिव्यकीर्ति
अगली सुनवाई की तारीख: 22 जुलाई 2025

डॉ. विकास दिव्यकीर्ति
डॉ. विकास दिव्यकीर्ति

कौन हैं डॉ. विकास दिव्यकीर्ति?

डॉ. विकास दिव्यकीर्ति एक प्रसिद्ध भारतीय शिक्षक, लेखक, मोटिवेशनल वक्ता और यूपीएससी कोचिंग के क्षेत्र में एक प्रमुख नाम हैं। वे दिल्ली में दृष्टि आईएएस (Drishti IAS) कोचिंग संस्थान के संस्थापक और प्रबंध निदेशक हैं, जो सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए जाना जाता है। उनका जन्म 26 दिसंबर 1973 को हरियाणा के भिवानी शहर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता दोनों हिंदी साहित्य के प्रोफेसर थे, जिसके कारण उनकी हिंदी साहित्य में गहरी रुचि रही।

उनकी शिक्षा की बात करें तो वह दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में बीए, हिंदी साहित्य में एमए, एम.फिल और पीएचडी हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय और भारतीय विद्या भवन से अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद में स्नातकोत्तर डिग्री भी हासिल की है। उनकी रुचि दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान, सिनेमा अध्ययन, सामाजिक मुद्दों और राजनीति विज्ञान में भी है।

अब तक ज्ञात जानकारी के अनुसार, डॉ. विकास दिव्यकीर्ति ने अपने संघर्षों और मेहनत के बल पर अपने करियर को उंचाईयों पर पहुँचाया है. 1996 में यूपीएससी परीक्षा में विकास दिव्यकीर्ति ने पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास की और 384वीं रैंक हासिल की, जिसके बाद उन्हें सेंट्रल सेक्रेटेरियल सर्विस मिली। हालांकि, उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और पढ़ाने का रास्ता चुना। 1999 में उन्होंने दृष्टि आईएएस कोचिंग संस्थान की स्थापना की, जिसका उद्देश्य हिंदी माध्यम के छात्रों को सरल और सहज भाषा में यूपीएससी की तैयारी कराना था। उनकी पत्नी, डॉ. तरुणा वर्मा, इस संस्थान की निदेशक हैं।

उनके यूट्यूब चैनल Drishti IAS और व्यक्तिगत चैनल पर लाखों फॉलोअर्स हैं, जहां वे शैक्षिक सामग्री, मोटिवेशनल वीडियो और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं। वे ‘दृष्टि करेंट अफेयर्स टुडे’ पत्रिका के संपादक हैं और कई किताबें और लेख लिख चुके हैं। 2023 में रिलीज हुई फिल्म ‘12वीं फेल’ में उन्होंने अपने ही किरदार में एक कैमियो किया, जो आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार शर्मा की कहानी पर आधारित है।

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